December 30, 2024
Why in news ? Recent instances of judicial misconduct, including Justice Shekhar Kumar Yadav’s controversial remarks reflecting bias against the Muslim community, highlight the urgent need for stronger accountability mechanisms in India’s higher judiciary. These cases underscore the importance of transparency and impartiality to maintain public trust in the judicial system.
Constitutional Provisions:
Article 124(4) and (5): Impeachment of Judges
Judges of the Supreme Court and High Courts can be removed for proven misbehavior or incapacity through a process established by law.
Removal requires:
Article 235: Control Over Subordinate Judiciary
High Courts exercise control over subordinate courts, ensuring discipline and accountability.
Judicial Conduct Codes:
Restatement of Values of Judicial Life (1997):
In-House Procedure (1999):
Statutory Mechanisms:
Contempt of Courts Act, 1971:
Judges (Inquiry) Act, 1968:
Judicial Review and Accountability:
Legislative Efforts:
Role of the Bar and Media:
Advocates and media play an informal role in holding the judiciary accountable by exposing judicial misconduct and initiating public discourse.
Challenges in Judicial Accountability:
Lack of Transparency:
Limited Mechanisms for Public Complaints:
The public has limited avenues to lodge complaints against judges.
Way Forward:
Statutory Mechanisms:
Periodic Training:
Independent Oversight Body:
Recent Case laws:
Facts: The case dealt with whether a sitting judge of the High Court or Supreme Court can be prosecuted for criminal offenses like corruption.
Judgment: The Supreme Court held that no criminal case could be registered against a judge of the High Court or the Supreme Court without prior sanction from the Chief Justice of India (CJI). This judgment highlighted the need for accountability while safeguarding judicial independence.
Justice C.S. Karnan Contempt Case (2017):
Facts: Justice C.S. Karnan, a sitting judge of the Calcutta High Court, was found guilty of contempt of court for his actions against fellow judges and his failure to respect judicial discipline.
Judgment: The Supreme Court sentenced Justice Karnan to six months imprisonment, marking an unprecedented step in holding a judge accountable for misconduct.
Campaign for Judicial Accountability and Reforms (CJAR) v. Union of India (2018)
Facts: The case questioned the lack of transparency in the functioning of the judiciary, including in judicial appointments and the handling of allegations against judges.
Judgment: The Court stressed that judicial accountability must be balanced with judicial independence. It also underscored the role of the collegium in ensuring transparency and accountability in judicial appointments.
भारत में न्यायिक जवाबदेही के प्रावधान: न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968/न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971:
चर्चा में क्यों? न्यायिक कदाचार के हालिया उदाहरण, जिनमें न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की मुस्लिम समुदाय के प्रति पक्षपातपूर्ण टिप्पणी शामिल है, भारत की उच्च न्यायपालिका में मजबूत जवाबदेही तंत्र की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। ये मामले न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और निष्पक्षता के महत्व को रेखांकित करते हैं।
संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 124(4) और (5): न्यायाधीशों पर महाभियोग
अनुच्छेद 235: अधीनस्थ न्यायपालिका पर नियंत्रण
न्यायिक आचरण संहिता:
इन-हाउस प्रक्रिया (1999):
वैधानिक तंत्र:
न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971:
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968:
न्यायिक समीक्षा और जवाबदेही:
विधायी प्रयास:
न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 (व्यपगत):
बार और मीडिया की भूमिका:
न्यायिक जवाबदेही में चुनौतियाँ:
पारदर्शिता का अभाव:
आगे की राह:
वैधानिक तंत्र: न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक का संशोधित संस्करण पुनः प्रस्तुत करना। आवधिक प्रशिक्षण: सभी स्तरों पर न्यायाधीशों के लिए अनिवार्य नैतिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण। स्वतंत्र निरीक्षण निकाय: स्वतंत्रता को कम किए बिना न्यायिक शिकायतों को संभालने के लिए एक गैर-पक्षपाती निकाय की स्थापना करना।
हाल के केस लॉ:
के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ (1991):
तथ्य: इस मामले में इस बात पर विचार किया गया कि क्या उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के किसी मौजूदा न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार जैसे आपराधिक अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।
निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की पूर्व स्वीकृति के बिना उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। इस निर्णय ने न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए जवाबदेही की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
न्यायमूर्ति सी.एस. कर्णन अवमानना मामला (2017):
तथ्य: कलकत्ता उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.एस. कर्णन को साथी न्यायाधीशों के विरुद्ध उनके कार्यों और न्यायिक अनुशासन का सम्मान न करने के लिए न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया गया।
निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति कर्णन को छह महीने के कारावास की सजा सुनाई, जो किसी न्यायाधीश को कदाचार के लिए उत्तरदायी ठहराने में एक अभूतपूर्व कदम है।
न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) बनाम भारत संघ (2018):
तथ्य: इस मामले में न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठाया गया, जिसमें न्यायिक नियुक्तियाँ और न्यायाधीशों के खिलाफ आरोपों से निपटना शामिल है।
निर्णय: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक जवाबदेही को न्यायिक स्वतंत्रता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। इसने न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में कॉलेजियम की भूमिका को भी रेखांकित किया।
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