कश्मीर हिमालय में पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना: उभरते जोखिम
समाचार में क्यों? हाल ही में एक अध्ययन ने कश्मीर हिमालय में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो पहले नजरअंदाज किया गया था, несмотря на इसके पर्यावरणीय और आधारभूत संरचनाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव। 24 मार्च 2025 को रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन्स: सोसाइटी एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित यह शोध बताता है कि जलवायु परिवर्तन से प्रेरित पर्माफ्रॉस्ट का क्षरण जम्मू और कश्मीर (J&K) और लद्दाख में सड़कों, घरों, झीलों और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए खतरा बन रहा है। यह चिंता भारतीय हिमालय पर वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभाव के बीच बढ़ रही है, जिसे 2021 के चमोली हिमस्खलन और 2023 के दक्षिण ल्होनक झील विस्फोट जैसे घटनाओं ने उजागर किया है, जिससे बेहतर निगरानी और योजना की तत्काल मांग उठी है।
मुख्य बिंदु:
कश्मीर विश्वविद्यालय और IIT-बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की सीमा और जोखिमों का खुलासा किया:
- व्यापक पर्माफ्रॉस्ट कवरेज: पर्माफ्रॉस्ट J&K और लद्दाख के कुल क्षेत्र का 64.8% हिस्सा कवर करता है, जिसमें 26.7% सतत, 23.8% असतत, और 14.3% छिटपुट है। लद्दाख में सबसे अधिक 87% क्षेत्र शामिल है, जबकि जम्मू के तराई मैदान और शिगर घाटी में कोई पर्माफ्रॉस्ट नहीं है।
- संरचनाओं पर खतरा: पिघलता पर्माफ्रॉस्ट 193 किमी सड़कों, 2,415 घरों, 903 अल्पाइन झीलों, और आठ जलविद्युत परियोजनाओं को खतरे में डाल रहा है, जिससे कनेक्टिविटी, राष्ट्रीय सुरक्षा (जैसे लद्दाख में सैन्य संरचनाएं), और ऊर्जा स्थिरता पर चिंता बढ़ रही है।
- पर्यावरणीय खतरा: पर्माफ्रॉस्ट में बड़ी मात्रा में कार्बनिक कार्बन जमा है, जो पिघलने पर मीथेन—एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस—के रूप में निकलता है, जिससे जलवायु परिवर्तन बढ़ता है। अध्ययन ने J&K में 332 प्रोग्लेशियल झीलों की पहचान की, जिनमें से 65 पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का जोखिम है।
- डेटा-आधारित जानकारी: अध्ययन ने NASA के MODIS सेंसर से 1,176 उपग्रह चित्रों (2002–2023) का विश्लेषण किया, जो 222,236 वर्ग किमी को कवर करता है, ताकि जमे हुए क्षेत्रों और तापमान परिवर्तनों को मैप किया जा सके, जिसमें सतह के तापमान में वृद्धि को मुख्य कारण बताया गया।
- मानवीय और प्राकृतिक कारक: तापमान वृद्धि के अलावा, वनोन्मूलन, भूमि उपयोग परिवर्तन, जंगल की आग, भूकंप, और संरचना परियोजनाएं (बांध, सड़कें, रियल एस्टेट) पर्माफ्रॉस्ट को अस्थिर करते हैं, जिसमें पर्यटन अतिरिक्त दबाव डालता है।
- विशेषज्ञों की राय: इरफान रशीद ने इसे “महत्वपूर्ण” अध्ययन बताया, जो पर्माफ्रॉस्ट जोखिमों की अनदेखी को उजागर करता है। रीत कमल ने अधिक शोध की आवश्यकता पर जोर दिया, जबकि फारूक अहमद डार ने लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रभाव को कम करने के लिए निष्कर्षों को योजना में शामिल करने का आग्रह किया।
- अनिश्चितताएं और सिफारिशें: भूजल और नदी प्रवाह पर जोखिम अनकहा है, लेकिन विशेषज्ञ स्थानीय निगरानी (जैसे डेटा लॉगर्स) और उपग्रह डेटा के साथ पर्माफ्रॉस्ट-जागरूक संरचना योजना की वकालत करते हैं ताकि इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में स्थिरता सुनिश्चित हो।
पर्माफ्रॉस्ट क्या है?
पर्माफ्रॉस्ट किसी भी प्रकार की जमीन—जैसे मिट्टी, तलछट, या चट्टान—को कहते हैं जो कम से कम दो लगातार वर्षों तक (0°C या उससे नीचे) जमे रहती है। हालांकि, अधिकांश पर्माफ्रॉस्ट हजारों या लाखों वर्षों से जमा हुआ है, जो अक्सर अंतिम हिम युग से संबंधित है।
यह आमतौर पर ध्रुवीय क्षेत्रों (जैसे आर्कटिक, अंटार्कटिक) और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों जैसे हिमालय, आल्प्स, और एंडीज में पाया जाता है।
पर्माफ्रॉस्ट की मोटाई कुछ मीटर से लेकर एक किलोमीटर से अधिक तक हो सकती है और इसमें बर्फ, कार्बनिक पदार्थ, और कार्बन डाइऑक्साइड व मीथेन जैसी फंसी गैसें हो सकती हैं।
पर्माफ्रॉस्ट के प्रकार:
- सतत पर्माफ्रॉस्ट: लगभग सारी जमीन जमी होती है (जैसे ध्रुवीय क्षेत्र)।
- असतत पर्माफ्रॉस्ट: आधे से अधिक जमीन जमी होती है, कुछ पिघले हुए हिस्सों के साथ।
- छिटपुट पर्माफ्रॉस्ट: ज्यादातर पिघली जमीन के बीच जमी हुई छोटी-छोटी जगहें।
मुख्य विशेषताएं:
- कार्बन भंडारण: पर्माफ्रॉस्ट में विश्व भर में 1,400–1,850 अरब टन कार्बनिक कार्बन जमा है—वायुमंडल में मौजूद मात्रा का दोगुना।
- पिघलने का जोखिम: वैश्विक तापमान बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, जिससे कार्बन मीथेन (CO₂ से 25–30 गुना शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) के रूप में निकलता है, जो जलवायु परिवर्तन को तेज करता है।
- संरचनात्मक प्रभाव: जमी हुई जमीन स्थिरता देती है; पिघलने से यह कमजोर होती है, जिससे संरचनाएं और पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ते हैं।
पर्माफ्रॉस्ट और इसके प्रभावों के उदाहरण:
- साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट (रूस):
विवरण: साइबेरिया में दुनिया का सबसे मोटा और प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट है, जो रूस के 65% क्षेत्र को कवर करता है। यह millennia से जमा है, जिसमें मैमथ जैसे प्राचीन कार्बनिक पदार्थ संरक्षित हैं।
प्रभाव: पिघलने से 2020 नोरिल्स्क तेल रिसाव जैसी घटनाएं हुईं, जहां अस्थिर जमीन के कारण एक ईंधन टैंक ढह गया, जिससे 21,000 टन डीजल नदियों में फैल गया। यमाल प्रायद्वीप में 2014 में खोजा गया “मीथेन क्रेटर” भी पिघलने से गैस विस्फोट का परिणाम है।
महत्व: साइबेरिया का पिघलना वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ा योगदान देता है, अनुमान है कि 2100 तक 50–100 अरब टन कार्बन निकल सकता है।
- कश्मीर हिमालय (भारत)
- विवरण: मार्च 2025 के एक अध्ययन के अनुसार, J&K और लद्दाख का 64.8% क्षेत्र पर्माफ्रॉस्ट से ढका है, जिसमें लद्दाख का 87% शामिल है। यह ऊंचाई पर सतत से लेकर निचले क्षेत्रों में छिटपुट है।
- प्रभाव: पिघलने से 193 किमी सड़कें, 2,415 घर, 903 अल्पाइन झीलें, और आठ जलविद्युत परियोजनाएं खतरे में हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण ल्होनक झील विस्फोट (सिक्किम, अक्टूबर 2023) पर्माफ्रॉस्ट क्षरण से जुड़ा था, जहां ढलान विफलता ने GLOF शुरू किया, 90 से अधिक लोगों की मौत हुई और तीस्ता III जलविद्युत संयंत्र को नुकसान पहुंचा। J&K में 332 झीलों में से 65 पर ऐसा ही खतरा है।
- महत्व: यह उदाहरण दिखाता है कि भारत के हिमालय में पर्माफ्रॉस्ट पिघलना जलवायु परिवर्तन और मानवीय दबाव (जैसे संरचनाएं) को जोड़ता है, जिससे सुरक्षा, कनेक्टिविटी, और जल संसाधनों को खतरा है।
- अलास्का (USA)
- विवरण: अलास्का के आर्कटिक क्षेत्र में सतत पर्माफ्रॉस्ट है, जो टुंड्रा परिदृश्यों को सहारा देता है और हजारों वर्षों से जमा है।
- प्रभाव: पिघलने से सड़कें टूट गईं, घर डूब गए, और ट्रांस-अलास्का पाइपलाइन सिस्टम के हिस्सों को महंगी मरम्मत की जरूरत पड़ी। तटीय कटाव ने न्यूटोक जैसे गांवों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया।
- महत्व: अलास्का दिखाता है कि पर्माफ्रॉस्ट पिघलना आधुनिक संरचनाओं और स्वदेशी समुदायों को कैसे बाधित करता है, जिससे अरबों की लागत आती है।
पर्माफ्रॉस्ट क्यों मायने रखता है?
- जलवायु चक्र: पिघलने से मीथेन और CO₂ निकलता है, जो वैश्विक तापमान को बढ़ाता है, और अधिक पर्माफ्रॉस्ट पिघलाता है—एक दुष्चक्र।
- पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: पिघलना परिदृश्य बदलता है, जिससे वनस्पति, जीव-जंतु, और जल प्रणालियां (जैसे भूजल और नदी प्रवाह) प्रभावित होती हैं।
- मानवीय परिणाम: संरचनाओं का ढहना, GLOF से बाढ़, और रहने योग्य भूमि का नुकसान आजीविका और अर्थव्यवस्था को खतरे में डालता है।