Nobel Prize in Economics: 2024/ Why nations fail or succeed?अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार: 2024/ राष्ट्र असफल या सफल क्यों होते हैं?

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October 15, 2024

Nobel Prize in Economics: 2024/ Why nations fail or succeed?अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार: 2024/ राष्ट्र असफल या सफल क्यों होते हैं?

The Nobel laureates in the economic sciences have demonstrated the importance of societal institutions for a country’s prosperity. Societies with a poor rule of law and exploitative institutions do not generate growth or change for the better. Where does India fit into this understanding?
The Royal Swedish Academy of Sciences on Monday awarded the Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel for 2024 to three US-based economists — Daron Acemoglu, Simon Johnson, and James A Robinson — “for studies of how institutions are formed and affect prosperity”. The Nobel citation states the three economists “have helped us understand differences in prosperity between nations”.

The big question…

Why are some nations rich and others poor? Why do some nations fail while others succeed in achieving prosperity? These are questions that have puzzled economists for decades.

  • Over the years, many explanations have been put forward — everything from biology to geographical location to climatic conditions to evolution has been offered as the reason why some nations have done better than others. Of course, since many nations that are relatively poor today weren’t so in the past (some were in fact, quite rich), any particular answer also depends on what time period is considered when analysing the question.
  • Yet the question itself remains relevant. As the Academy noted: “The richest 20 per cent of the world’s countries are now around 30 times richer than the poorest 20 per cent. Moreover, the income gap between the richest and poorest countries is persistent; although the poorest countries have become richer, they are not catching up with the most prosperous. Why?”

…And the answer

This year’s laureates in the economic sciences have demonstrated the importance of societal institutions for a country’s prosperity. By institutions, the laureates refer to the broad set of rules that govern the behaviour of individuals in a society or a country. “Societies with a poor rule of law and institutions that exploit the population do not generate growth or change for the better,” states the citation.

The three laureates have distinguished between inclusive and extractive institutions.

An inclusive institutional framework refers to the existence of democracy, law and order, protection of property rights, etc.

By contrast, an extractive institutional framework typically refers to a lack of rule of law, of power being concentrated in the hands of a few (autocracy or dictatorship), and the associated risks of expropriation.

  • These two opposite types of institutional frameworks lead to very different incentives for people in an economy or society.
  • For instance, if people are assured that their property will not be taken away at will, or that their incomes and profits will be protected for generations, they tend to focus on boosting long-term growth and prosperity. In the absence of an inclusive institutional framework, the incentives collapse, undermining longer-term prosperity.

Available evidence:

  • How do we know that the causality flows from the existence of institutions to economic prosperity and not the other way round? Moreover, how can one be sure that there is a causality at all? Further, rich countries are different from poor countries in many ways — not just in the type of institutions they have — and these differences could, in turn, be affecting both their institutions as well as their economic growth.
  • The laureates examined the European colonisation of large parts of the world, and summarised their findings in a paper titled ‘The Colonial Origins of Comparative Development: An Empirical Investigation’, which was first published in The American Economic Review in 2001.
  • They found that one important explanation for the current differences in prosperity is the political and economic systems that the colonisers introduced, or chose to retain, from the 16th century onward.

More precisely, they found that “in some colonies, the purpose was to exploit the indigenous population and extract natural resources to benefit the colonisers”, while in other cases, “the colonisers built inclusive political and economic systems for the long-term benefit of European settlers”.

This effect can be understood in relation to what happened in India under British rule. As the Academy notes, as late as the mid-18th century, industrial production in what is now India was higher than in the US. “This has changed fundamentally since the start of the nineteenth century, which speaks to the reversal primarily being a result of differences in institutions. The technical innovations sweeping across the world were only able (to) take hold in places where institutions had been established that would benefit the wider population,” it says.

Rationale for choices

Why did the colonisers choose to have one set of rules (institutions) in one colony and another set in another colony? The researchers found that the choice of institutions by the colonisers — regardless of who they were — was linked to their mortality.

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार: 2024/ राष्ट्र असफल या सफल क्यों होते हैं?

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने इस साल के लिए अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की औपचारिक घोषणा कर दी है। इस साल अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिया जाने वाले स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार से तीन अर्थशास्त्रियों डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए रॉबिन्सन को सम्मानित किया गया है।

  • इस साल अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिया जाने वाला यह पुरस्कार कमजोर और समृद्ध देशों के बीच खुशहाली के अंतर को समझने के लिए किए उनके शोध के लिए दिया गया है। उनका अध्ययन देशों के बीच समृद्धि और संसाधनों में अंतर पर आधारित है।
  • इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने अपने शोध में इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे कमजोर देश सालों की तरक्की के बावजूद अमीर देशों की तरह विकसित नहीं हो पाए हैं। इसके साथ ही उन्होंने इस बात का भी अध्ययन किया है कि संस्थाएं कैसे बनती हैं और समाज की तरक्की और खुशहाली को कैसे प्रभावित करती हैं।
  • उन्होंने अपनी रिसर्च से साबित किया है कि मजबूत और निष्पक्ष संस्थाएं जैसे अच्छी सरकार और बेहतर कानून व्यवस्था लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक असर डालती है।
  • बता दें कि डेरॉन ऐसमोग्लू और साइमन जॉनसन अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं। वहीं जेम्स ए रॉबिन्सन शिकागो विश्वविद्यालय से संबंध रखते हैं।

क्यों कुछ देश गरीब तो कुछ समृद्ध होते हैं?

इस बारे  में जानकारी साझा करते हुए नोबेल पुरस्कार समिति ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्‍स (पूर्व में ट्विटर) पर जानकारी दी है कि संस्थाओं के गठन और बदलाव की परिस्थितियों को समझाने वाला उनका मॉडल तीन कारकों पर आधारित है।

 पहले में इस बात को उजागर किया है कि संसाधनों का बंटवारा कैसे किया जाए और समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास है।

दूसरा यह है कि जनता को कभी-कभी सत्ता का प्रयोग करने का अवसर मिलता है। वो संगठित होकर सत्तारूढ़ शासक वर्ग को धमका कर ऐसा कर सकते हैं। इसका मतलब है कि सत्ता और शक्ति निर्णय लेने की ताकत से कहीं अधिक है।

तीसरा है प्रतिबद्धता की समस्या, जिसका मतलब है कि अभिजात वर्ग के लिए निर्णय लेने की शक्ति जनता को सौंपने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

  • इससे पहले वर्ष 2023 अर्थशास्त्र के क्षेत्र का स्वेरिगेस रिक्सबैंक पुरस्कार हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर क्लाउडिया गोल्डिन को दिया गया था। क्लाउडिया गोल्डिन को यह पुरस्कार श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी के लिए किए उनके कामों के लिए दिया गया था।
  • उनकी रिसर्च से पता चला है कि वैश्विक श्रम बाजार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है और यदि वे काम करती भी हैं तो भी आय के मामले में पुरुषों से पीछे रहती हैं। उनका शोध इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे महिलाओं की पसंद अक्सर शादी, घर चलाने और परिवार की देखभाल की जिम्मेवारियों से बाधित होती है।
  • आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र के नोबेल समझे जाने वाले स्वेरिगेस रिक्सबैंक पुरस्कार को 1968 में अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में शुरू किया गया था। यह पुरस्कार स्वीडन के सेंट्रल बैंक द्वारा दिए दान पर आधारित है।

केवल तीन महिलाओं को मिला है अब तक यह पुरस्कार:

  • 1969 में रग्नर फ्रिस्क और जान टिनबर्गेन को पहला स्वेरिगेस रिक्सबैंक पुरस्कार दिया गया था। तब से लेकर अब तक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 56 बार यह पुरस्कार दिया जा चुका है।
  • अब तक केवल तीन महिलाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, इनमें सबसे पहले 2009 में एलिनोर ओस्ट्रोम, 2019 में एस्थर डुफ्लो और 2023 में क्लाउडिया गोल्डिन को इस पुरस्कारसे नवाजा गया।
  • गौरतलब है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार जापानी संगठन निहोन हिदान्क्यो को परमाणु शस्त्रों के विरुद्ध उनके प्रयासों के लिए दिया गया है।
  • यह संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुए अमेरिकी परमाणु बम हमलों के पीड़ितों के उत्थान के लिए काम करता है।

 

 

 

 

 


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