Judicial reform in India: Challenges  & Way forwards/भारत में न्यायिक सुधार: चुनौतियाँ और आगे की राह

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November 22, 2024

Judicial reform in India: Challenges  & Way forwards/भारत में न्यायिक सुधार: चुनौतियाँ और आगे की राह

Judicial reform in India: Challenges  & Way forwards

Responsive Judicial System:

Article published in Indian express: 22 Nov,2024

  • Exactly one year ago, the Supreme Court’s Centre for Research and Planning (CRP) published a report, ‘State of the Judiciary’, in which the current Chief Justice of India (CJI) Sanjiv Khanna’s suggestions find a place.

What are challenges that article highlights?

  • The administrative bottlenecks
  • Subordinate Court Backlogs – Over 45 million civil and criminal cases are pending
  • 55 per cent of a judicial officer’s day in the criminal courts is spent on routine administrative tasks such as issuing summons and setting dates, rather than substantive judicial work.

❖ Case Management Problems -Poor case-flow management systems

❖ Structural Issues – Limited resources and infrastructure

❖ Administrative Overload on Judges

  • Shortage of qualified people in the court registries.
  • There is a 27 per cent shortage of non-judicial staff across the country. Some states like Bihar, Rajasthanand Telangana had shortages veering nearer to 50 per cent.

Reforms Needed :

❖ Performance Metrics for Judges & positive reinforcemnet for performers (SC Centre for

research and planning)

❖ Empower supervisory authorities (High Courts) to oversee subordinate court performance

❖ Leveraging Technology – VC facility – Summoning etc

❖ Induction of Experts from Outside the Judiciary

  • Divesting administrative responsibilities
  • open reviews of case disposal
What is Open review?

Open reviews involve a transparent and systematic examination of how cases are being managed and disposed of by lower courts.

This can include:

  • Performance audits of judges and court staff.
  • Monitoring the pendency of cases and reasons for delays.
  • Identifying procedural bottlenecks or inefficiencies in case management.
  • Ensuring accountability and adherence to prescribed timeframes for different case types.

Case study: Cataract Blindness Project of the 1990s/

Steps Taken :

  • e-filing
  • digitization
  • half the district courts
  • Delhi High Court’s Zero Pendency Courts project

भारत में न्यायिक सुधार: चुनौतियाँ और आगे की राह

उत्तरदायी न्यायिक प्रणाली:

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख: 22 नवंबर, 2024

ठीक एक साल पहले, सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग (CRP) ने ‘स्टेट ऑफ द ज्यूडिशियरी’ नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के सुझावों को जगह मिली है।

लेख में किन चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है?

  • न्यायिक प्रणाली में प्रशासनिक अड़चनें।
  • अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामले – 45 मिलियन से अधिक दीवानी और आपराधिक मामले लंबित हैं
  • आपराधिक न्यायालयों में न्यायिक अधिकारी का 55 प्रतिशत दिन नियमित प्रशासनिक कार्यों जैसे कि समन जारी करना और तारीखें तय करना, पर खर्च होता है, न कि मूल न्यायिक कार्य।

केस प्रबंधन की समस्याएँ – केस-फ्लो प्रबंधन की खराब व्यवस्था

❖ संरचनात्मक मुद्दे – सीमित संसाधन और बुनियादी ढाँचा

❖ न्यायाधीशों पर प्रशासनिक बोझ

  • न्यायालय रजिस्ट्री में योग्य लोगों की कमी।
  • देश भर में गैर-न्यायिक कर्मचारियों की 27 प्रतिशत कमी है। बिहार, राजस्थान और तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों में यह कमी 50 प्रतिशत के करीब है।

आवश्यक सुधार:

❖ न्यायाधीशों के लिए प्रदर्शन मीट्रिक और प्रदर्शन करने वालों के लिए सकारात्मक सुदृढ़ीकरण (अनुसंधान और योजना के लिए एससी केंद्र)

❖ अधीनस्थ न्यायालयों के प्रदर्शन की निगरानी के लिए पर्यवेक्षी अधिकारियों (उच्च न्यायालयों) को सशक्त बनाना

❖ प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना – वीसी सुविधा – समन आदि

❖ न्यायपालिका के बाहर से विशेषज्ञों को शामिल करना

  • प्रशासनिक जिम्मेदारियों से छुटकारा
  • केस निपटान की खुली समीक्षा
खुली समीक्षा क्या है?

खुली समीक्षा में निचली अदालतों द्वारा मामलों का प्रबंधन और निपटान कैसे किया जा रहा है, इसकी पारदर्शी और व्यवस्थित जांच शामिल है।

इसमें शामिल हो सकते हैं:

Ø  न्यायाधीशों और न्यायालय कर्मचारियों का प्रदर्शन ऑडिट।

Ø  लंबित मामलों और देरी के कारणों की निगरानी करना।

Ø  केस प्रबंधन में प्रक्रियागत बाधाओं या अक्षमताओं की पहचान करना।

Ø  विभिन्न प्रकार के मामलों के लिए जवाबदेही और निर्धारित समय-सीमा का पालन सुनिश्चित करना।

 केस स्टडी: 1990 के दशक की मोतियाबिंद अंधापन परियोजना/

उठाए गए कदम:

  • ई-फाइलिंग
  • डिजिटलीकरण
  • आधी जिला अदालतें
  • दिल्ली उच्च न्यायालय की जीरो पेंडेंसी कोर्ट परियोजना

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