Why in News? The Supreme Court has recently acknowledged the courage of the women who had defied personal and professional costs to lodge complaints of sexual abuse in the Kerala film industry, but said investigating agencies must also respect the women who wanted to keep quiet.
History and Background:
The Hema Committee was constituted in 2013 by the Ministry of Information and Broadcasting, Government of India.
Chairperson: Justice Mukul Mudgal, a retired Chief Justice of the Punjab and Haryana High Court, headed the committee.
- Purpose:
The committee was set up to review the institutional mechanisms to regulate film certification in India.
- Trigger for Formation:
Growing concerns over censorship controversies and lack of transparency in the working of the Central Board of Film Certification (CBFC) led to the committee’s formation.
Key Findings and RecommendationsL
- Focus on Certification, Not Censorship:
- The committee emphasized that the CBFC should act as a certification body rather than a censoring authority.
- Suggested a shift from moral policing to respecting creative freedom.
- Rating System Overhaul:
- Recommended an updated classification system for films with additional categories (e.g., UA-12+, UA-15+).
- Transparency in Film Certification:
- Advocated for digitizing the process of film certification to ensure transparency and accountability.
- Suggested fixed timelines for granting certification.
- Regional Representation:
- Emphasized the need for regional representation in CBFC to better understand cultural contexts and sensitivities.
Review Mechanism:
Proposed the establishment of a statutory Film Certification Appellate Tribunal for resolving disputes related to film certification.
Autonomy of CBFC:
- Recommended greater functional independence for the CBFC to insulate it from political and bureaucratic influence.
Industry Engagement:
- Suggested regular consultations with film industry stakeholders to address concerns and foster collaboration.
Content Guidelines:
- Advocated for clearer and updated content guidelines to ensure consistent decision-making without arbitrariness.
Impact and Significance:
- Criticism of Existing Censorship Practices:
The committee highlighted excessive cuts demanded by the CBFC and the need for reform to align with democratic values.
- Policy Influence:
While some recommendations were adopted in subsequent reforms, others remain under debate, including the extent of CBFC’s authority.
- Legal and Societal Impact:
The report fueled discussions on balancing creative freedom with societal concerns and has shaped public discourse on censorship in India.
Key Facts:
- Year of Formation: 2013.
- Head of Committee: Justice Mukul Mudgal.
- Core Objective: Reforming film certification to ensure freedom of expression and reducing censorship controversies.
- Classification System: Introduction of new categories like UA-12+ and UA-15+.
- Outcome: Influenced subsequent policy debates but faced partial implementation of recommendations.
हेमा समिति की रिपोर्ट: अवलोकन और मुख्य तथ्य:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उन महिलाओं के साहस को स्वीकार किया है, जिन्होंने केरल फिल्म उद्योग में यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराने के लिए व्यक्तिगत और पेशेवर लागतों की अवहेलना की, लेकिन कहा कि जांच एजेंसियों को उन महिलाओं का भी सम्मान करना चाहिए जो चुप रहना चाहती थीं।
इतिहास और पृष्ठभूमि:
गठन:
हेमा समिति का गठन 2013 में भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा किया गया था।
अध्यक्ष:
इस समिति की अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल ने की।
उद्देश्य:
फिल्म प्रमाणन को विनियमित करने के लिए संस्थागत तंत्र की समीक्षा करना।
गठन का कारण:
फिल्म प्रमाणन के दौरान सेंसरशिप से संबंधित विवादों और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के कामकाज में पारदर्शिता की कमी के कारण इस समिति का गठन किया गया।
प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें:
- सेंसरशिप नहीं, प्रमाणन पर जोर:
- समिति ने सुझाव दिया कि CBFC एक प्रमाणन प्राधिकरण के रूप में कार्य करे, सेंसरिंग प्राधिकरण के रूप में नहीं।
- नैतिक निगरानी (मोरल पुलिसिंग) के बजाय रचनात्मक स्वतंत्रता का सम्मान करने की आवश्यकता पर बल दिया।
- रेटिंग प्रणाली में सुधार:
- फिल्म प्रमाणन के लिए नई श्रेणियों (जैसे UA-12+, UA-15+) को शामिल करने की सिफारिश की।
- प्रमाणन प्रक्रिया में पारदर्शिता:
- फिल्म प्रमाणन की प्रक्रिया को डिजिटाइज़ करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने की सिफारिश।
- प्रमाणन प्रक्रिया के लिए निश्चित समय सीमा तय करने का सुझाव।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
- CBFC में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर बल दिया ताकि सांस्कृतिक संदर्भों और संवेदनशीलताओं को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
- समीक्षा तंत्र:
- फिल्म प्रमाणन से संबंधित विवादों के समाधान के लिए एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (Film Certification Appellate Tribunal) स्थापित करने का प्रस्ताव।
- CBFC की स्वायत्तता:
- CBFC को राजनीतिक और नौकरशाही प्रभाव से मुक्त रखने के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की सिफारिश।
- उद्योग सहभागिता:
- फिल्म उद्योग के हितधारकों के साथ नियमित परामर्श की सिफारिश की ताकि उनकी चिंताओं को दूर किया जा सके।
- सामग्री दिशानिर्देश (Content Guidelines):
- निर्णय लेने में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट और अद्यतन सामग्री दिशानिर्देशों की सिफारिश।
प्रभाव और महत्व:
मौजूदा सेंसरशिप प्रथाओं की आलोचना:
समिति ने CBFC द्वारा अत्यधिक कटौती की मांग को उजागर किया और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
नीतिगत प्रभाव:
कुछ सिफारिशों को बाद के सुधारों में अपनाया गया, लेकिन CBFC की प्राधिकरण सीमा से जुड़ी बहस जारी है।
कानूनी और सामाजिक प्रभाव:
इस रिपोर्ट ने रचनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक चिंताओं के संतुलन पर चर्चा को बढ़ावा दिया और भारत में सेंसरशिप पर सार्वजनिक विमर्श को आकार दिया।
प्रमुख तथ्य:
- गठन का वर्ष: 2013
- समिति के प्रमुख: न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल
- मुख्य उद्देश्य: रचनात्मक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और सेंसरशिप विवादों को कम करने के लिए फिल्म प्रमाणन में सुधार।
- वर्गीकरण प्रणाली: UA-12+ और UA-15+ जैसी नई श्रेणियों का प्रस्ताव।
- परिणाम: नीतिगत बहसों को प्रभावित किया, लेकिन सिफारिशों का आंशिक रूप से ही कार्यान्वयन हुआ।
हेमा समिति रिपोर्ट भारत में सेंसरशिप, रचनात्मक स्वतंत्रता और नियामक सुधारों पर चल रही चर्चाओं का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।