January 8, 2025
Daily Legal Current for PCS- J/APO/Judiciary : 8 Jan 2025- Section 326 of the Indian Penal Code (IPC) -Section 118(3) of BNS)/ IPC की धारा 326 और बीएनएस की धारा 118(3) पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
Why in News ?The supreme court has recently said that the offence of grievous hurt by dangerous weapons(s.326 ipc) can be compromised in exceptional circumstances.
The Supreme Court of India’s observation about Section 326 of the Indian Penal Code (IPC) ( Now Section 118(3) of BNS) reflects its acknowledgment of inherent judicial powers to address specific cases equitably, despite statutory limitations.
1. Section 326 of the IPC(BNS Setion 118):
Scenario 1: If a person uses a knife to stab someone, causing them hurt, this would be punishable under BNS Section 118 with imprisonment up to three years or a fine.
Scenario 2: If someone causes grievous hurt by using a dangerous chemical that severely harms another person, the punishment could be imprisonment for one year to life, plus a fine.
Non-compoundable Nature: Under the Code of Criminal Procedure (CrPC), certain offenses are categorized as non-compoundable, meaning the parties involved cannot mutually agree to settle the case outside the court without judicial intervention.
2. Supreme Court’s Observation:
- The Court acknowledged that Section 326 is non-compoundable, meaning that ordinarily, a case under this section cannot be quashed solely based on a compromise between the victim and the accused.
- However, the Court noted that exceptional circumstances might arise where invoking its inherent powers under Article 142 of the Constitution could provide justice.
3. Inherent Powers of the Court:
- Article 142: Grants the Supreme Court the authority to pass orders necessary for doing complete justice in any case or matter pending before it.
- Application: Even if the offense is non-compoundable, the Court may decide to allow compromise between parties if it deems it just, equitable, and in the larger interest of justice.
4. Key Considerations for Invoking Inherent Power:
- Nature of the Offense: Whether it affects public interest or is a private dispute between the parties.
- Harm to Society: Grievous hurt cases generally involve public safety concerns, but the Court might consider specific contexts.
- Rehabilitation and Amicability: If the accused has shown remorse, and the victim voluntarily agrees to the compromise.
- Exceptional Circumstances: Unique facts that justify deviating from the strict application of statutory provisions.
5. Precedents Supporting Judicial Intervention:
- The Supreme Court has previously quashed non-compoundable offenses in cases like Gian Singh v. State of Punjab (2012), where it observed that courts could consider quashing FIRs in heinous offenses if doing so ensures justice.
- Similar reasoning applies here, where the balance between the strict application of law and equitable justice is crucial.
6. Implications:
- Judicial Discretion: Reinforces the judiciary’s role in ensuring justice beyond rigid legal frameworks.
- Balance of Power: Highlights the interplay between statutory provisions and constitutional powers.
- Case-Specific Decisions: Reflects the evolving nature of justice, tailored to the facts of each case.
In summary, while Section 326 IPC is non-compoundable, the Supreme Court’s observation underlines its capacity to adapt the application of laws in unique cases to uphold justice, guided by constitutional principles and fairness.
IPC की धारा 326 और बीएनएस की धारा 118(3) पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 326 आईपीसी (जो अब बीएनएस की धारा 118(3) है) के तहत “खतरनाक हथियारों द्वारा गंभीर चोट पहुंचाने” के अपराध को कुछ असाधारण परिस्थितियों में समझौते के आधार पर निपटाने की बात कही है। यह न्यायालय के न्यायपूर्ण और विशेष शक्तियों के प्रयोग को दर्शाता है।
1. धारा 326 आईपीसी (बीएनएस की धारा 118(3)) का प्रावधान:
परिदृश्य:
- परिदृश्य 1: अगर कोई व्यक्ति चाकू से किसी को चोट पहुंचाता है, तो यह बीएनएस धारा 118(3) के तहत आता है और इसके लिए तीन साल की कैद या जुर्माने की सजा हो सकती है।
- परिदृश्य 2: अगर कोई व्यक्ति खतरनाक रसायन का उपयोग करके किसी को गंभीर चोट पहुंचाता है, तो यह सजा आजीवन कारावास तक हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
गैर-समझौता प्रकृति:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत, धारा 326 जैसे अपराध गैर-समझौतात्मक (Non-compoundable) माने जाते हैं।
- इसका मतलब है कि पीड़ित और आरोपी आपसी सहमति से अदालत के बाहर मामला सुलझा नहीं सकते।
2. सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:
- कोर्ट ने माना कि धारा 326 के मामले गैर-समझौतात्मक होते हैं।
- हालांकि, असाधारण परिस्थितियों में कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए समझौते को स्वीकार कर सकता है।
3. अदालत की अंतर्निहित शक्तियां:
अनुच्छेद 142:
- सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी मामले में “पूर्ण न्याय” करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सके।
अनुप्रयोग:
- भले ही अपराध गैर-समझौतात्मक हो, कोर्ट अगर यह देखता है कि समझौता न्याय, समानता और व्यापक हित में है, तो इसे स्वीकार कर सकता है।
4. अंतर्निहित शक्तियां उपयोग करने के लिए प्रमुख विचार
- अपराध का स्वभाव: यह देखना कि अपराध सार्वजनिक हित को प्रभावित करता है या केवल पक्षों के बीच निजी विवाद है।
- समाज पर प्रभाव: गंभीर चोट के मामले आमतौर पर सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़े होते हैं।
- पुनर्वास और सामंजस्य: अगर आरोपी ने पश्चाताप दिखाया हो और पीड़ित स्वेच्छा से समझौते के लिए सहमत हो।
- असाधारण परिस्थितियां: ऐसे अनोखे तथ्य जो विधिक प्रावधानों के कठोर अनुप्रयोग से अलग रास्ता अपनाने को सही ठहराते हों।
5. न्यायिक हस्तक्षेप के लिए पूर्व उदाहरण:
- ग्यान सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012): सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी गंभीर अपराध में एफआईआर को रद्द करना न्यायसंगत हो, तो अदालत ऐसा कर सकती है।
- यही तर्क यहां भी लागू होता है, जहां कानून के कठोर अनुपालन और न्यायसंगत परिणाम के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
6. प्रभाव और महत्व:
- न्यायिक विवेक: कानून को कठोर ढांचे से परे ले जाकर न्याय सुनिश्चित करता है।
- सत्ता का संतुलन: वैधानिक प्रावधानों और संवैधानिक शक्तियों के बीच तालमेल दर्शाता है।
- मामले-विशिष्ट निर्णय: न्याय के बदलते स्वरूप को दर्शाता है, जो हर मामले के तथ्यों के अनुसार होता है।
निष्कर्ष:
हालांकि, धारा 326 आईपीसी (बीएनएस धारा 118(3)) गैर-समझौतात्मक है, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि असाधारण मामलों में न्यायालय संविधान के सिद्धांतों और न्याय की भावना के आधार पर मामले को सुलझाने के लिए लचीला रुख अपना सकता है।