भारत में चुनाव आयोग की स्वायत्तता और नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की सिफारिशें:
पृष्ठभूमि: हाल ही में, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एस.वाई. कुरैशी ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और इसके कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि कैसे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
मुख्य मुद्दे और सुझाव
1. नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी:
लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता और द्विदलीय (बिपार्टिज़न) दृष्टिकोण की कमी है, जो भारत के चुनाव आयोग (ECI) की स्वायत्तता और निष्पक्षता को कमजोर करता है। चुनाव आयोग भारत के लोकतंत्र की नींव के रूप में कार्य करता है, और इसके स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर जनता के विश्वास को सुनिश्चित करता है।
2. द्विदलीय नियुक्ति प्रक्रिया की मांग:
नागरिक समाज संगठन (CSOs), जिनमें लोकतंत्र के लिए सुधार (ADR) शामिल है, ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी और द्विदलीय (बिपार्टिज़न) प्रक्रिया की मांग की है, जिससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके। ADR ने 2015 में कार्यपालिका के एकल नियंत्रण के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि यह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।
3. सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और 2023 का कानून:
सर्वोच्च न्यायालय के 2023 के आदेश में (विक्रम बनवाल बनाम भारत सरकार मामले में) कहा गया था कि प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता (LoP) और भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) की एक कॉलिजियम द्वारा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जानी चाहिए, जब तक संसद इस प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए कानून न बना दे।
2023 में संसद द्वारा पास किए गए नए कानून ने कॉलिजियम की संरचना में बदलाव किया और CJI को चयन पैनल से बाहर कर दिया। यह कानून नियुक्ति प्रक्रिया को पार्टी आधारित (पार्टी-विशेष) बना देता है, जिसमें प्रधानमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित) और LoP शामिल होते हैं।
4. कार्यपालिका द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटना:
2023 का नया कानून सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की भावना को पलटता है, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्री का प्रभाव अधिक हो जाता है, जबकि विपक्ष के नेता का भूमिका गौण हो जाता है। इस व्यवस्था से चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं, और इसे लेकर कई चिंता व्यक्त की गई है।
5. कानूनी चुनौती जारी:
ADR और अन्य याचिकाकर्ताओं ने 2024 में इस नए कानून को संविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रहते हुए, सरकार ने मार्च 2024 में नए ढांचे के तहत चुनाव आयोग के नियुक्ति किए।
6. द्विदलीय और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया की आवश्यकता:
लेख में सुझाव दिया गया है कि भारत को द्विदलीय और निष्पक्ष कॉलिजियम आधारित प्रणाली को अपनाना चाहिए, जो संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और नेपाल जैसे देशों से प्रेरणा ले सकता है।
7. मुख्य न्यायधीश का कॉलिजियम में पुनः समावेश:
लेख में यह भी सुझाव दिया गया है कि यदि CJI को पुनः कॉलिजियम में शामिल किया जाए, जैसा कि प्रारंभ में प्रस्तावित था, तो वर्तमान कानून को चुनौती देने वाली विवादित याचिका समाप्त हो सकती है, और नियुक्ति प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बन सकती है।
8. जन-धारणा और चुनावी सत्यता का महत्व:
लेख इस बात पर जोर देता है कि नियुक्ति प्रक्रिया के ऑप्टिक्स (दिखावट) का चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और भारत के चुनावों की सत्यता में विश्वास बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
सुझाए गए सुधार:
चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए कई समितियों और आयोगों ने सुधार की सिफारिशें की हैं:
1. 2004 कानून आयोग की रिपोर्ट:
कानून आयोग (2015 की 255वीं रिपोर्ट) ने चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:
- नियुक्ति प्रक्रिया में कानूनी ढांचा तैयार करना, ताकि यह कार्यपालिका के नियंत्रण से बाहर हो और एक कॉलिजियम प्रणाली को लागू किया जा सके।
- स्वतंत्र वित्तीय अधिकार: चुनाव आयोग को अपना बजट प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, और इसे सरकार के धन पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
- CJI का चयन समिति में समावेश: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए CJI को चयन समिति में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि प्रक्रिया निष्पक्ष और द्विदलीय हो।
2. 2015 का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (ADR मामले में):
ADR ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में संविधान के तहत एक कानून बनाने का निर्देश दिया, जिसमें प्रधानमंत्री, LoP, और CJI की कॉलिजियम प्रणाली शामिल हो।
3. 2023 का चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) कानून:
2023 में संसद ने एक नया कानून पास किया, जिसमें CJI को चयन पैनल से बाहर कर दिया गया। यह कानून पार्टी-विशेष प्रक्रिया को बढ़ावा देता है और इसके खिलाफ कई नागरिक समाज संगठन, जैसे ADR, ने याचिका दायर की है।
4. चुनाव सुधार समिति (दिनेश गोस्वामी समिति – 1990):
इस समिति ने बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग की सिफारिश की थी, साथ ही चुनाव आयोग को धोखाधड़ी से निपटने की अधिकार दिए थे।
5. 2010 का चुनाव आयोग समिति रिपोर्ट (T.S. कृष्णमूर्ति द्वारा):
इस रिपोर्ट में स्वतंत्रता, आर्थिक स्वायत्तता, और चुनाव आयोग के भूमिका में विस्तार करने की सिफारिश की गई थी।
निष्कर्ष:
चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता भारत के चुनावों की ईमानदारी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव है। 2023 का कानून और सर्वोच्च न्यायालय का आदेश इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन मुख्य न्यायधीश को चयन समिति में पुनः समावेश करने, एक पारदर्शी और द्विदलीय प्रणाली को अपनाने और वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि चुनाव आयोग की स्वायत्तता बनाए रखी जा सके।