Failures of Four UN Environmental Summits in 2024/2024 में चार प्रमुख UN पर्यावरण शिखर सम्मेलन की असफलताएँ:

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January 2, 2025

Failures of Four UN Environmental Summits in 2024/2024 में चार प्रमुख UN पर्यावरण शिखर सम्मेलन की असफलताएँ:

Key Points:

1. Context

  • Four major UN-led summits on biodiversity (Colombia), climate (Azerbaijan), land degradation (Saudi Arabia), and plastic pollution (South Korea) did not achieve substantial progress.
  • These summits were intended to align global goals, address accountability, and secure financing for critical environmental issues.

2. Reasons for Failures

a) Diverging National Priorities

  • Developing nations’ demands: More financial and technological assistance to tackle climate and economic challenges.
  • Developed nations’ stance: Reluctance to commit additional resources, citing domestic pressures.

b) Examples of Stalemates

  • Biodiversity Financing (Colombia): Disagreement over the required $700 billion annual funding stalled progress.
  • Climate Finance (Azerbaijan): Developing nations’ demand for $1.3 trillion annual funding resulted in vague commitments without concrete action.
  • Fossil Fuel Transition: No agreement on accountability mechanisms for the Paris Agreement’s global stocktake.
  • Plastics Treaty (South Korea): Opposition from plastics-dependent economies prevented a binding treaty, focusing instead on recycling efforts.

c) Challenges from Global Crises

  • Resources were diverted due to COVID-19, geopolitical tensions, and economic instability.
  • Many developing countries face debt, inflation, and climate vulnerabilities, weakening their negotiating power.

3. Implications of the Failures

a) Delayed Action

  • Critical issues like biodiversity conservation, climate change mitigation, and plastic pollution control are postponed.
  • Risk of crossing irreversible tipping points increases.

b) Fragmented Efforts

  • Lack of a unified global approach could lead to incoherent and uncoordinated regional actions.

c) Erosion of Trust

  • Repeated failures weaken confidence among nations, complicating future agreements.

d) Heightened Pressure on Future Summits

  • Upcoming summits are under increased pressure to deliver tangible outcomes.

4. Strategies to Overcome Challenges

a) Climate Finance

  • Developed nations must meet their financial and technological commitments to rebuild trust and ensure equitable negotiations.

b) Transparency and Accountability

  • Implement robust mechanisms to monitor progress and ensure nations fulfill their pledges.

c) Inclusive Diplomacy

  • Address geopolitical tensions to promote equitable participation, especially for vulnerable nations.

d) Action-Oriented Approach

  • Shift focus from commitments to measurable and tangible outcomes.

e) Integrated Solutions

  • Recognize interconnections between climate change, biodiversity, land degradation, and plastic pollution for holistic strategies.

5. Conclusion

  • The failures highlight the urgent need for collective global action.
  • Nations must set aside short-term interests to adopt a shared vision for a sustainable and resilient future.

2024 में चार प्रमुख UN पर्यावरण शिखर सम्मेलन की असफलताएँ:

प्रमुख बिंदु

1. संदर्भ

चार प्रमुख UN-नेतृत्व वाले शिखर सम्मेलन – जैव विविधता (कोलंबिया), जलवायु परिवर्तन (अज़रबैजान), भूमि क्षरण (सऊदी अरब), और प्लास्टिक प्रदूषण (दक्षिण कोरिया) – ने महत्वपूर्ण प्रगति नहीं की।
इन शिखर सम्मेलनों का उद्देश्य वैश्विक लक्ष्यों को संरेखित करना, जवाबदेही तय करना, और महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों के लिए वित्तपोषण प्राप्त करना था।

2. असफलताओं के कारण

a) राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में भिन्नता

  • विकसित देशों की स्थिति: घरेलू दबावों का हवाला देते हुए अतिरिक्त संसाधनों को प्रतिबद्ध करने में संकोच।
  • विकसित देशों की मांगें: जलवायु और आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक वित्तीय और प्रौद्योगिकी सहायता की आवश्यकता।

b) गतिरोध के उदाहरण

  • जैव विविधता वित्तपोषण (कोलंबिया): जैव विविधता संरक्षण के लिए सालाना 700 बिलियन डॉलर की आवश्यकता पर असहमति के कारण प्रगति रुकी।
  • जलवायु वित्तपोषण (अज़रबैजान): विकासशील देशों ने सालाना 1.3 ट्रिलियन डॉलर की मांग की, लेकिन केवल अस्पष्ट प्रतिबद्धताएँ दी गईं, ठोस कदम नहीं उठाए गए।
  • कोयला ईंधन से संक्रमण: पेरिस समझौते की वैश्विक समीक्षा पर जवाबदेही तंत्र पर कोई समझौता नहीं हो सका।
  • प्लास्टिक प्रदूषण (दक्षिण कोरिया): प्लास्टिक पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं ने एक बाध्यकारी संधि का विरोध किया, और इसके बजाय केवल पुनर्चक्रण के प्रयासों पर जोर दिया गया।

c) वैश्विक संकटों से चुनौतियाँ

  • COVID-19 महामारी, भू-राजनीतिक संघर्ष और आर्थिक अस्थिरता के कारण संसाधन और ध्यान पर्यावरणीय प्राथमिकताओं से हटा।
  • कई विकासशील देशों को महंगाई, ऋण और जलवायु संकटों का दोहरा बोझ झेलना पड़ रहा है, जो उनके बातचीत की शक्ति को कमजोर कर रहा है।

3. असफलताओं के परिणाम

a) कार्रवाई में देरी

  • जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, और प्लास्टिक प्रदूषण नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे टल गए हैं।
  • अपरिवर्तनीय बदलावों का खतरा बढ़ गया है।

b) विखंडित प्रयास

  • एक सुसंगत वैश्विक दृष्टिकोण की कमी से क्षेत्रीय प्रयासों में असंगति और वैश्विक समन्वय की कमी हो सकती है।

c) विश्वास का क्षरण

  • लगातार असफलताओं से देशों के बीच विश्वास कमजोर हुआ है, जो भविष्य में समझौतों को जटिल बना सकता है।

d) आगामी शिखर सम्मेलनों पर बढ़ा हुआ दबाव

  • भविष्य में होने वाले शिखर सम्मेलनों पर वास्तविक परिणाम देने की बड़ी उम्मीदें हैं।

4. चुनौतियों को पार करने के लिए रणनीतियाँ

a) जलवायु वित्तपोषण

  • विकसित देशों को अपने वित्तीय और प्रौद्योगिकी संबंधी वादों को पूरा करना चाहिए ताकि विश्वास को पुनर्निर्मित किया जा सके और न्यायसंगत बातचीत सुनिश्चित हो सके।

b) पारदर्शिता और जवाबदेही

  • प्रगति की निगरानी और देशों द्वारा अपने वादों को पूरा करने के लिए मजबूत तंत्रों को लागू करना आवश्यक है।

c) समावेशी कूटनीति

  • भू-राजनीतिक तनावों को संबोधित करना चाहिए ताकि विशेष रूप से संवेदनशील देशों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

d) क्रियाशील दृष्टिकोण

  • केवल प्रतिबद्धताओं से अधिक ध्यान ठोस परिणामों और क्रियात्मक कदमों पर केंद्रित करना चाहिए।

e) एकीकृत समाधान

  • जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, भूमि क्षरण और प्लास्टिक प्रदूषण के बीच आपसी संबंधों को पहचानते हुए समग्र रणनीतियाँ तैयार करनी चाहिए।

5. निष्कर्ष

  • इन असफलताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की अत्यंत आवश्यकता है।
  • देशों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एक साझा और स्थिर भविष्य की दिशा में मिलकर काम करना चाहिए।

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