December 7, 2024
Why in News? The World Drought Atlas, jointly developed by the UNCCD and European Commission JRC, provides an n-depth view of the systemic nature of drought risks. It uses maps, infographics, and case studies to depict the cascading effects of droughts across sectors like energy, agriculture, transport, and public health.
Key Points:
Urgency of Global Action on Drought Resilience:
Sectoral Impacts and Interconnectivity:
Energy: Hydropower reductions during droughts lead to higher energy prices and power outages.
Agriculture: Accounting for 70% of freshwater usage, agriculture is severely affected, further exacerbating food insecurity.
Waterways and Trade: Drought-induced low water levels disrupt transport, as seen in cases like the Panama Canal.
Ecosystems: Biodiversity loss amplifies drought risks, while greater biodiversity can enhance resilience.
Human-Made Droughts and Virtual Water Transfers:
Case Studies from Global Regions:
The Atlas highlights lessons from drought-prone areas, including:
Great Plains, USA: Insights into large-scale drought impacts on agriculture and energy.
Barcelona, Spain: Challenges in urban drought management.
Yangtze River Basin, China: Impacts on water security and biodiversity.
Indian Subcontinent and Horn of Africa: Socio-economic consequences and the plight of marginalized communities.
Measures to Build Drought Resilience:
The Atlas proposes actionable steps for managing and adapting to drought risks:
Governance: Early warning systems, microinsurance, and water-pricing reforms.
Land Management: Agroforestry, reforestation, and land restoration initiatives.
Water Management: Wastewater reuse, groundwater recharge, and conservation technologies.
Role of International Collaboration:
Call to Action for Proactive Drought Management:
Pathway to UNCCD COP16:
The publication aims to build momentum for decisive action at the upcoming UNCCD COP16 in Riyadh. It emphasizes turning scientific knowledge into policy and actionable strategies to ensure a drought-resilient future.
विश्व सूखा एटलस 2024:
चर्चा में क्यों? यूएनसीसीडी और यूरोपीय आयोग जेआरसी द्वारा संयुक्त रूप से विकसित विश्व सूखा एटलस, सूखे के जोखिमों की प्रणालीगत प्रकृति का गहन दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह ऊर्जा, कृषि, परिवहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सूखे के व्यापक प्रभावों को दर्शाने के लिए मानचित्रों, इन्फोग्राफिक्स और केस स्टडी का उपयोग करता है।
मुख्य बिंदु:
क्षेत्रीय प्रभाव और अंतर्संबंध:
ऊर्जा: सूखे के दौरान जलविद्युत में कमी से ऊर्जा की कीमतें बढ़ जाती हैं और बिजली की कटौती होती है।
कृषि: मीठे पानी के उपयोग का 70% हिस्सा होने के कारण, कृषि गंभीर रूप से प्रभावित है, जिससे खाद्य असुरक्षा और बढ़ जाती है।
जलमार्ग और व्यापार: सूखे के कारण कम जल स्तर परिवहन को बाधित करता है, जैसा कि पनामा नहर जैसे मामलों में देखा गया है।
पारिस्थितिकी तंत्र: जैव विविधता का नुकसान सूखे के जोखिम को बढ़ाता है, जबकि अधिक जैव विविधता लचीलापन बढ़ा सकती है।
मानव निर्मित सूखा और आभासी जल हस्तांतरण:
वैश्विक क्षेत्रों से केस स्टडीज़:
भारतीय उपमहाद्वीप और हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका: सामाजिक-आर्थिक परिणाम और हाशिए पर पड़े समुदायों की दुर्दशा।
सूखे के प्रति सहनशीलता विकसित करने के उपाय:
एटलस में सूखे के जोखिमों के प्रबंधन और अनुकूलन के लिए कार्रवाई योग्य कदम प्रस्तावित किए गए हैं:
शासन: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सूक्ष्म बीमा और जल-मूल्य निर्धारण सुधार।
भूमि प्रबंधन: कृषि वानिकी, पुनर्वनीकरण और भूमि बहाली पहल।
जल प्रबंधन: अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग, भूजल पुनर्भरण और संरक्षण प्रौद्योगिकियाँ।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका:
सक्रिय सूखा प्रबंधन के लिए कार्रवाई का आह्वान:
UNCCD COP16 के लिए मार्ग:
इस प्रकाशन का उद्देश्य रियाद में होने वाले आगामी UNCCD COP16 में निर्णायक कार्रवाई के लिए गति बनाना है। यह वैज्ञानिक ज्ञान को नीति और कार्रवाई योग्य रणनीतियों में बदलने पर जोर देता है ताकि सूखे से निपटने वाला भविष्य सुनिश्चित हो सके।
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